डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय एवं अनमोल वचन | Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography and Quotes in hindi
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक भारतीय दार्शनिक और राजनेता थे. वह तुलनात्मक धर्म और दर्शन के प्रतिष्ठित विद्वानों में से एक होने के साथ ही भारत के पहले उपराष्ट्रपति थे. अपने जीवन काल में वे कई सम्मानित पुरस्कार भी प्राप्त किये. उनके शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए सन 1962 से वार्षिक तौर पर उनके जन्म दिवस 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत और पश्चिमी दुनिया में हिन्दू धर्म की उनकी रक्षा अत्यधिक प्रभावशाली रही है. अपने प्रभावशाली लेखन कार्य और पश्चिमी दार्शनिक और साहित्यिक परम्पराओं के उनके व्यापक ज्ञान से उन्होंने भारत और पश्चिम सभ्यता को जोड़ने के लिए एक पुल की तरह कार्य किया. कई विश्वविद्यालय, जिनमे यूरोप और अमेरिका के विश्वविद्यालय शामिल है के द्वारा इन्हें भारतीय दर्शन, संस्कृति और सभ्यता पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया. वह पहले ऐसे भारतीय शिक्षक और विद्वान् थे, जिसे ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाने का गौरव प्राप्त है. उनके संदेशो को बड़े ही सम्मान और उत्साह के साथ सुना जाता था.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का व्यक्तिगत जानकारी (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Personal Details)
इनका जन्म भारत के आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्य की सीमा के निकट थिरुत्तानी गांव में एक आर्थिक रूप से पिछड़े ब्राहमण परिवार में 5 सितम्बर 1888 को हुआ था. इनकी शादी पारिवारिक परंपरा के अनुसार 16 वर्ष की अवस्था में सिवाकमु से हुई थी. इस दंपत्ति के 6 बच्चे हुए जिनमे पांच बेटियां और 1 बेटा था. उनकी पत्नी का देहांत 1956 में हो गया था. 86 वर्ष की अवस्था में 17 अप्रैल 1975 को इनका निधन हो गया.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का पारिवारिक जीवन (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Family)
इनके पिता का नाम विरसावामी था, वे एक स्थानीय राजस्व अधिकारी के अधीनस्थ एक राजस्व अधिकारी सेवा में थे और उनकी माता जी का नाम सिताम्मा था. उनका बचपन थिरुत्तानी और तिरुपति में ही व्यतीत हुआ. इनके पिता चाहते थे कि वे किसी संस्थान में अध्ययन न कर किसी मंदिर के पुजरी से शिक्षा ग्रहण करें.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Education)
उनकी प्रारंभिक शिक्षा थिरुत्तानी के के वी हाईस्कूल में ही हुई बाद में वे 1896 में तिरुपति के हेर्मंस्बुर्ग इवैंजेलिकल लूटेराण स्कूल और वालजपेट के सरकारी उच्च विद्यालय में चले गए. उन्होंने वेल्लोरे के वूरहीस कॉलेज और 17 साल की उम्र में मद्रास के क्रिश्चन कॉलेज से अपनी पढाई पूरी की. उन्होंने दर्शनशास्त्र में 1906 में अपनी मास्टर डिग्री को प्राप्त किया. वे पूर्व छात्रों में सबसे प्रतिष्ठित छात्रों में से एक थे, उन्हें शिक्षण के लिए छात्रवृति भी प्रदान की गयी थी. इन्होने ईसाई आलोचकों की आलोचना को एक चुनौती के रूप में लेते हुए उन्होंने एम. ए. डिग्री के लिए ‘वेदांत और इसकी आध्यात्मिक दृढ संकल्प की नीति’ पर अपनी थीसिस लिखी, जिसकी सराहना उनके दर्शन के प्रोफ़ेसर डॉ. अल्फ्रेड जॉर्ज ने की. उन्होंने भारतीय दर्शन और हिन्दू धर्म की आजीवन रक्षा का नेतृत्व किया.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का करियर (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Career)
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का करियर निम्न आधार पर दर्शाया गया है :
शैक्षणिक करियर (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Educational Career)
अप्रैल 1909 में इनको मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग में एक सहायक व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया था. इसके बाद 1918 में उन्हें मैसूर विश्वविद्यालय ने दर्शनशास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर के रूप में चुना. मैसूर के महाराजा कॉलेज में उन्होंने पढाया. उन्होंने द क्वेस्ट, जर्नल ऑफ़ फिलोसोफी और द इन्टरनेशनल जर्नल ऑफ़ एथिक्स जैसे कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के लिए लेख लिखे थे.
इन्होंने दर्शनशास्त्र पर विभिन्न पुस्तके लिखी है, उन्होंने अपनी पहली पुस्तक द फिलोसफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर पूरी की, वे टैगोर के दर्शन को भारतीय भावना की वास्तविक अभिव्यक्ति मानते थे. 1920 में उनकी दूसरी पुस्तक द रिगेंस ऑफ़ रिलिजन इन समकालीन दर्शनशास्त्र प्रकाशित हुई. पहली बार उनकी नियुक्ति दक्षिण भारत से बाहर हुई जिसमें वे 1921 के फ़रवरी में कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त हुए. 1926 में उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विश्वविद्यालय में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया. 1929 में उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड में जीवन के आदर्शो पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था. उन्होंने 1931 से 1936 तक आंध्रप्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया. वे 1939 से जनवरी 1948 तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्यरत थे.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Political Life)
इन्होंने राजनीति में प्रवेश काफ़ी देर से किया वे राजनीति में अपने मनोरंजक अंदाज़ के लिए भी जाने जाते है. वे 1946 से 1952 तक यूनेस्को में भारत का प्रतिनिधित्व किये. 1949-1952 तक वे सोवियत संघ के लिए भारत के राजदूत थे. 1952 में वे भारत के पहले उपराष्ट्रपति और 1962 में दुसरे राष्ट्रपति बने. प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक और इतिहासकार बेर्टनड रुसेल ने राष्ट्रपति की उनकी न्युक्ति पर कहा था कि यह दर्शन का महान सम्मान होगा. 1967 के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन के विवादित कटाक्ष (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Controversial Topics)
एक बार ब्रिटिश संसद में रात्रि भोज के द्वारान ब्रिटिश नागरिक ने भारतीयों की काले रंग की चमड़ी पर टिपण्णी की थी, उस वक्त शांतिपूर्वक इन्होने टिपण्णी का जवाब देते हुए कहा था कि भगवान ने एक बार एक रोटी के टुकडे की जरुरत होने पर भी इसका ज्यादा सेवन किया, जिसे तथाकथित नीग्रों के रूप में जाना जाता था और जिस रोटी को उन्होंने ज्यादा पकाते हुए आदर्श रोटी बनाया उसको भारतीय कहा गया. इस अंदाज में उन्होंने जवाब दिया था.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अवार्ड और उपलब्धियां (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Awards)
इनको सबसे पहली उपलब्धि 1931 में प्राप्त हुई, जब उन्हें नाईट बैचलर नियुक्त किया गया. हालाँकि भारत की स्वतंत्रता के बाद ‘सर’ शीर्षक का उन्होंने उपयोग बंद कर दिया था. इसके अलावा वे 1938 में ब्रिटिश आकादमी के निर्वाचित फेलो से सम्मानित हुए. उनके द्वारा प्राप्त अवार्डों की सूची निम्नवत है-
वर्ष | पुरस्कार |
1954 |
भारत के सर्वोच्च नागरिक के रूप में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित
कला और विज्ञान के लिए जर्मन बुक ट्रेड पुरस्कार |
1962 | शांति पुरस्कार |
1968 | लेखन कार्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति |
1975 | गैर आक्रामकता और सार्वभौमिक सच्चाई का सन्देश देने के लिए टेम्पलटन पुरस्कार |
सर्वपल्ली राधाकृष्णन के चर्चित वचन (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Quotes in hindi)
- ईश्वर वे नहीं है जिसकी पूजा की जाती है, लेकिन यह वे अधिकार है जिसके नाम का हम दावा करते है और किसी भी तरह के अतिक्रमण को करने या नियमों का उल्लंघन करने से अपने आप को रोकते है और इस ईश्वर रूपी अद्वैत शक्ति और प्राधिकरण की आज्ञा मानते है.
- धर्म भय पर विजय है ऐसा माना जाता है कि धर्म के बिना एक व्यक्ति बिगड़े हुए घोड़े की तरह है.
- एक बुराई के भ्रम रूप में जीवन को देखना किसी भी तरीके से उचित नहीं है.
- एक पुस्तक हमारा सच्चा साथी है इसको पढने की आदत हमें अकेलेपन में भी सच्चे आनंद की अनुभूति देता है. किताबें वे साधन है जिसके माध्यम से हम अपनी संस्कृति को समझते है और उसका निर्माण करते है.
- कभी भी हमे ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हम सब कुछ जानते है जब हम ऐसा सोच लेते है तब हम सीखना बंद कर देते है जिससे हमारी प्रगति रुक जाती है.
- आनंद और ख़ुशी का अनुभव हमारे जीवन के ज्ञान और विज्ञान पर आधारित होते है.
- हमें अपने मानवता रूपी उन जड़ों को हमेशा याद रखना चाहिए जिसमे आदेश और स्वतंत्रता दोनों बसते है.
- हमारे सभी इतिहास के भविष्य वक्ता और विश्व संगठन अप्रभावी साबित होंगे जब नफरत से सच्चाई को दबाया जायेगा, इस तरह से लोग सच्चाई की प्रेरणा से प्रभावित नहीं होंगें.
अन्य पढ़ें –