युवराज सिंह का जीवन परिचय | Yuvraj Singh Biography in hindi
मध्यक्रम के बल्लेबाज युवराज सिंह एक भारतीय अर्न्तराष्ट्रीय क्रिकेटर हैं. युवराज भारतीय क्रिकेट के सुपरमॉडल भी है. कहा जाता है युवराज अगर अच्छे फार्म में हैं तो उनसे ज्यादा खतरनाक और निर्दयी बल्लेबाज कोई नहीं हो सकता है. युवराज वनडे क्रिकेट में 6 छक्के लगाने वाले एकमात्र भारतीय बल्लेबाज हैं. इन्हें सिक्सर किंग के नाम से भी जाना जाता है. युवराज का क्रिकेट कैरियर कई उतार चढ़ाव से गुजरा है. इस दौरान उन्होंने कई संघर्ष भी किये है. कैरियर को लेकर, परिवार को लेकर और जीवन को लेकर, पर इन संघर्षों में वे बार बार विजेता बन कर उभरे हैं. इसके अलावा वे स्लो लेफ्ट आर्म गेंदबाज भी है. 2011 के विश्वकप के असल आर्किटेक्ट भी युवराज ही थे.
युवराज सिंह का प्रारंभिक जीवन (Yuvraj Singh Early Life)
पिता भूतपूर्व क्रिकेटर योगराज सिंह और माता शबनम सिंह के यहाँ 12 दिसंबर 1981 को इनका जन्म हुआ. इनके पिता ने फिल्मों में भी अभिनय किया है. युवराज ने भी बचपन में दो फिल्मों में काम किया है. इनके माता पिता के अलग हो जाने के बाद युवराज ने पिता के साथ रहना शुरू किया. बचपन में युवराज को टेनिस और रॉलर स्केटिंग बहुत पसंद था. यहाँ तक कि अंडर 14 का रॉलर स्केटिंग प्रतियोगिता भी युवराज ने जीती थी, जोकि पिता योगराज सिंह को नापसंद था.
युवराज सिंह का कैरियर औऱ सफलता (Yuvraj Singh Career and Success Story)
युवराज ने महज 11 वर्ष से ही पंजाब के लिए खेलना आरंभ कर दिया था. हिमाचल प्रदेश के साथ खेलते हुए युवराज ने शतक लगाया और उनकी प्रतिभा को देखते हुए पंजाब क्रिकेट एसोशियेसन ने उन्हें अंडर 19 में खेलने को कहा. युवराज ने पहली बार फर्स्ट क्लस क्रिकेट 1997 में खेलना शुरू किया, लेकिन वो शुन्य पर आउट हो गये. जमशेदपुर में बिहार के खिलाफ खेलते हुए 358 रनों की इन्होंने बेमिसाल पारी खेली, जबकि बिहार की पूरी पारी 357 रन पर आल आउट हो गई थी. इसके बाद युवराज को अंडर 19 टीम में श्रीलंका दौरे के लिए चुना गया और वहाँ भी युवराज का खेल चयनकर्ताओं को प्रभावित किया. 2000 में अंडर 19 वर्ल्ड कप में युवराज ने शानदार प्रदर्शन किया और इसी के दम पर 2000 आईसीसी नॉक आउट ट्रॉफी में चुने गये. इसी प्रतियोगिता में युवराज ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ 84 रन बनाये. जिम्बाबवे टूर के बाद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया. फिर 2001 में कोका कोला कप में श्रीलंका के खिलाफ 98 रन की पारी खेलकर फार्म में आये. लेकिन बाद में फार्म फिर से बिखर गया और इंग्लैंड के दौरे पर नहीं जा पाये. इसके बाद युवराज ने घरेलू क्रिकेट में अपना ध्यान दिया, वहाँ पर कई अच्छी पारियों को खेलने के बाद 2002 के इंग्लैंड दौरे पर फिर से चुने गये. 2002 में नैटवेस्ट सीरीज युवराज के जीवन की एक काफी महत्वपूर्ण पारियों में से थी. 13 जुलाई को इंगलैण्ड और भारत के मध्य खेले जा रहे फाइनल मैच में भारत लगभग हार की कगार पर था, लेकिन युवराज और कैफ की जोड़ी ने भारत को वो मैच जीता दिया. क्रिकेट के इतिहास में ये मैच रोमांचक मैचों की श्रृंखला में दर्ज है.
2003 से 2005 तक युवराज का प्रर्दशन काफी औसत रहा. 2003 के विश्वकप में सिर्फ एक मैच में अर्द्धशतक लगा पाये युवराज बाकी मैंचो में नहीं चल पाये. 2003 में ही बंगलादेश के खिलाफ पहला शतक लगाया. 2004 के आरंभिक मैचों में युवराज फार्म में रहे और इन्ही कारण से इनको दल में भी शामिल किया गया. इस दौर में सबसे बेहतरीन पारी युवराज ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी में खेले थे. उन्होंने 116 गेंदो पर 139 रन बनाया था. इसके बाद पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच में चुन लिये गये और युवराज ने शुरूआती टेस्ट में एक शतक भी लगाया. युवराज के अच्छे फार्म में न रहने के बावजूद उन्हें टीम में रखा गया. 2005 से 2007 युवराज के कैरियर का अब तक का सबसे महत्वपूर्ण समय रहा है. इस दौर में युवराज लगातार अच्छा खेले. जिसमें पाकिस्तान के साथ पांच मैंचो की श्रृंखला भी है. उन्हें फिनिशर का टैग भी दिया जाने लगा. पर टेस्ट क्रिकेट में युवराज इस दौर में भी कुछ खास नहीं कर पाये और 2006 में साउथ अफ्रीका जाने वाले दल में उन्हें नहीं रखा गया. 2007 के वर्ल्ड कप में बांगलादेश से हारने के बाद पूरे देश में भारतीय टीम की खिंचाई होने लगी. उसी साल टी 20 वर्ल्ड कप टीम का उन्हें उप कप्तान नियुक्त किया गया. इससे पहले विश्वकप में युवराज ने शानदार प्रदर्शन किया और इंगलैण्ड के खिलाफ सिर्फ 12 गेंदो में अर्द्धशतक पूरा करने का रिकार्ड अपने नाम किया. इस प्रदर्शन के लिए बीसीसीआई ने उन्हें विशिष्ट उपहार भी दिये. उसी साल सचिन के घायल होने के कारण बंगलोर टेस्ट में उनको शामिल किया गया, जिसमें उन्होंने अपने जीवन का सर्वाधिक स्कोर 169 बनाया. 2011 विश्वकप तक युवराज के कैरियर में इसी तरह उतार चढ़ाव चलता रहा. 2011 विश्वकप में उनके दल में शामिल होने पर कई लोगों ने आपत्ति दर्ज किया. इन सबके बावजूद युवराज ने शानदार प्रर्दशन किया और भारत को दूसरा विश्वकप दिलाया.
युवराज का कैंसर का बाउंसर (Yuvraj Singh Cancer)
2011 वर्ल्डकप के दौरान ही युवराज बीमार रहने लगे. बार बार उल्टी आना और सिर चकराना से परेशान हो रहे थे. विश्वकप के बाद उन्हें पता चला कि बायें फेफड़े में टूयमर है. वे बॉस्टन में कैंसर का ईलाज कराने के लिए चले गये. ईलाज के दौरान उनकी मां उनके साथ थी. मार्च 2012 को युवराज को अस्पताल से केमोथेरेपी ईलाज से मुक्त कर दिया गया. इस दौरान युवराज को कई मानसिक संघर्षो से भी गुजरना पड़ा और कई बार वे निराश हो जाते थे. अंत में इस संघर्ष से भी विजयी होकर बाहर निकले.
युवराज फिर से क्रिकेट की ओर (Yuvraj Singh Play Again)
ईलाज के बाद युवराज ने क्रिकेट का अभ्यास शुरू कर दिया. टी20 के दूसरे वर्ल्ड कप में उन्हें टीम में शामिल किया गया. पहले मैच में उनका प्रदर्शन क्रिकेट प्रेमियों को भावुक कर गया. इसके बाद युवराज टीम में आते जाते रहे है. लेकिन क्रिकेट का साथ उन्होंने अब तक नहीं छोड़ा. 2017 के इंग्लैंड के विरूद्ध एकदिवसीय और टी20 में वे खेलें और काफी अच्छा प्रदर्शन किया.
युवराज सिंह आईपीएल में (Yuvraj Singh IPL Career)
युवराज का आईपीएल कैरियर बहुत अच्छा नहीं रहा है. सबसे पहले उन्हें पंजाब के आइकन के रुप में किंग्स एलेवन के लिए चुना गया था. प्रदर्शन निराशाजनक होने के कारण पंजाब टीम का साथ छुट गया. उसके बाद उन्हें कई टीमों के लिए चुना गया. सबसे अंत में उन्हें सनराइजर्स हैदराबाद के साथ खेलते हुए सफलता हाथ लगी. फाइनल में शानदार प्रदर्शन कर इस वर्ष टीम को आईपीएल का खिताब भी दिलवाया.
युवराज सिंह का व्यक्तिगत जीवन (Yuvraj Singh Personal Life)
वर्ष 2017 में ही युवराज ने मॉडल हेजेल कीच से विवाह किया. युवराज की चैरिटी से एक संस्था भी चलती है जिसका नाम है यूवीकैन, जो कि कैंसर रोगियों का ईलाज में योगदान देता है. युवराज की एक बायोग्राफी द टेस्ट ऑफ माई लाईफ है. युवराज कार्टुन गेम के हीरो भी हैं.