तीन तलाक क्या है और इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला | What is Triple Talaq and Supreme Court Decision in hindi
मुस्लिम समुदाय में होने वाला तीन तलाक़ पूरे भारत में रहने वाले मुस्लिम समाज में एक लम्बे समय तक चला है. इस मुद्दे पर कई बार कोर्ट में अर्जी भी दी गई, और अब भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस केस में अपना फैसला सुना दिया है. इससे सम्बंधित सारी जानकारी यहाँ दी जा रही है.
तीन तलाक़ क्या है (What is Triple Talaq)
तीन तलाक़ एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत कोई मुस्लिम पुरुष अपनी स्त्री को केवल तीन बार तलाक़ कह कर ही तलाक़ दे सकता है. केवल तीन बार तलाक़ कहने मात्र से ही किसी भी मुस्लिम दम्पत्ति की शादी टूट जाती है और दोनों अलग हो जाते हैं. महज तीन बार तलाक कह कर तोड़े गये शादी को स्थायी रूप भी दे दिया जाता है. इसके बाद यदि दोनों स्त्री पुरुष पुनः विवाह करना चाहें तो स्त्री को हलाला नामक एक पुरानी प्रथा से गुज़रना होता है. तीन तलाक सम्बंधित बातों को समझने से पहले शरिया को समझना भी आवश्यक है.
शरिया मुख्यतौर पर इस्लामी क़ानून है, जिसे कुरान और हदीस के बातों से बनाया गया है. यह शरिया क़ानून इस्लामी मुफ़्ती द्वारा नियंत्रित और नियमित किया जाता है. इसी के आधार पर ये मुफ़्ती ग़ैर इस्लामी चीज़ों पर फतवा जारी करते हैं.
तीन तलाक़ को गहराई से समझने के लिये निकाह को समझना आवश्यक है. निकाह दरअसल एक लिखित दस्तवेज़ ‘निकाहनामा’ के अंतर्गत मुस्लिम स्त्रि और पुरुष के बीच किया समझौता जैसा होता है. इस निकाहनामे में मेहर तथा अन्य शर्तें हो सकती हैं. मेहर मुस्लिम पुरुष अपनी होने वाली बीवी के नाम देता है, जिसके अंतर्गत पैसे आदि होते हैं. तीन तलाक से पहले इस बात को जानने की आवश्यकता है कि इस्लाम में सभी रीति रिवाज सुन्नत के अनुसार होता है. ‘सुन्नत’ का मतलब है ‘पैग़म्बर द्वारा दिए गये निर्देश’.
तलाक़ ए सुन्नत क्या है (What is Talaq-e-Sunnat)
इस्लामी प्रथाओं के अनुसार यदि किसी स्त्री पुरुष में मतभेद होता है तो सबसे पहले उन्हें आपस में बात करके इसे सुलझाने की आवश्यकता होती है. इस समय को ‘फैजू हुन्ना’ कहा जाता है. यदि यहाँ पर बात नहीं बनती है, तो ये दोनों शारीरिक रूप से अलग हो जाते हैं, जिसे ‘वह्जुरु हुन्ना’ कहा जाता है. यदि इस पर भी दोनों के बीच सम्बन्ध नहीं सुधरते हैं, तो उन्हें एक बार फिर एक दुसरे से बात करने का मौक़ा मिलता है और स्थितियों पर विचार करने का मौक़ा दिया जाता है. इस चरण को ‘वाज्रिबू हुन्ना’ कहा जाता है. यहाँ पर परिस्थितियां ठीक नहीं होने पर मध्यस्थता की बारी आती है.
तीन तलाक़ प्रथा (Triple Talaq Pratha)
उपरोक्त चारों चरण पूरी से नाकाम हो जाने पर तलाक़ की बारी आती है और पुरुष अपनी स्त्री को पहला तलाक़ कह पाता है. इसके बाद पुरुष को अपनी स्त्री के ‘इद्दाह’ के लिए रुकना पड़ता है. स्त्री के इद्दाह के समय पुरुष दो से अधिक तलाक़ नहीं कह सकता है. इद्दाह के अंतर्गत तीन महीने का समय आता है. इस तीन महीने के इद्दाह (मासिक चक्र) के दौरान कोई भी पुरुष अपनी स्त्री को तीसरा तलाक़ नहीं कह सकता है. इस समय यदि महिला गर्भावस्था में होती है, तो बच्चे के होने तक इद्दाह का समय माना जाता है. इद्दाह के बाद यदि स्थितियां बेहतर नहीं होती हैं तो पुरुष स्त्री को तीसरा तलाक़ देता है.
इंस्टेंट तलाक़ क्या है (What is Instant Talaq)
तीन तलाक़ को इंस्टेंट तलाक़ का एक ज़रिया बना लिया गया और स्त्रियों को पुरुष महज एक फ़ोन कॉल अथवा एसएमएस के ज़रिये तलाक़ ए बिद्दा के अंतर्गत तलाक़ दिया जाने लगा. इसका प्रयोग कई लोग बहुत ही तेज़ी से करने लगे और तात्कालिक तौर पर स्त्रियों को अपने पति से तलाक़ मिलने लगी.
तीन तलाक़ से परेशानियाँ (Triple Talaq Problem)
किसी भी प्रथा का समय के साथ बदलना अतिआवश्यक है. ध्यान देने वाली है कि तीन तलाक़ का प्रयोग कई मुस्लिम व्यक्ति करने लगे, जिस वजह से मुस्लिम महिलाओं को चाहे अनचाहे तलाक़ का सामना करना पड़ा. तीन तलाक़ जैसा कि ऊपर बताया गया की फ़ोन, फेसबुक, स्काइप, ई मेल आदि के ज़रिये लोग अपनी स्त्रियों को तीन तलाक देने लगे. इन दिनों ऐसी कई घटनाएं एक के बाद एक सामने आयीं. जहाँ पर एक तरफ ये प्रथा इस्लामी नीतियों के अनुसार सही था वहीँ दूसरी तरफ़ तलाक़ दी गयी स्त्रियों का जीवन ऐसे अचानक तलाक़ के बाद पूरी तरह से बेसहारा हो जाता है. ध्यान देने वाली बात है कि इस्लाम में अपनी पत्नी को तलाक़ देने के बाद स्त्री को किसी तरह का जीवन यापन भत्ता प्राप्त नहीं हो सकता है. अतः तलाक के बाद मुस्लिम स्त्रियों के जीवन यापन में कई तरह की समस्याएं आ जाती हैं. इसी के साथ बच्चों का भविष्य भी बुरी तरह से प्रभावित होने लगता है. ये तलाकशुदा स्त्रियाँ अपने बच्चों का भी सही से लालन पालन नहीं कर पातीं और बच्चों को शिक्षा वगैरह भी सही से नहीं मिल पाता. तलाक़ के इस नियम की इस वजह से कई मुस्लिम स्त्रियाँ इस डर में अपनी ज़िन्दगी गुजारती रहती हैं, कि कहीं उसका पति तलाक़ न देदे. इस तरह वे आज़ादी से अपनी ज़िन्दगी जी नहीं पाती हैं.
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला (Triple Talaq Supreme Court Decision in hindi)
सामाजिक स्तर और अधिकारों के नज़रिए को देखते हुए कई बड़े बड़े स्कॉलर और एक्टिविस्ट्स ने इस प्रथा के ख़िलाफ़ समय समय पर आवाज़ उठाया है. ग़ौरतलब है कि इसमें कई मुस्लिम स्कॉलर और महिला मुस्लिम एक्टिविस्ट भी शामिल हैं. यह मुद्दा एक लम्बे समय तक कोर्ट में चलते रहा है. अब जाकर सुप्रीमकोर्ट ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सूना दिया है, जो कि पूरे देश भर में लागू होगा.
- सुप्रीमकोर्ट में इस मुद्दे की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस कुरियन जोसफ, आर एफ़ नरीमन और यू यू ललित ने कहा कि ट्रिपल तलाक की वजह से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है.
- इस वजह से तीन तलाक पूरी तरह से असंवैधानिक है, जिसे बंद कराना कानूनी रूप से अनिवार्य है.
- सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दो चीफ़ जस्टिस जे एस खेहर और एस अब्दुल नज़ीर ने हालाँकि कहा कि तीन तलाक मुस्लिमों का ‘धर्म का अधिकार’ है और किसी भी तरह से असंवैधानिक नहीं है.
- इस तरह से 3: 2 के बहुमत से देशभर में तीन तलाक पर एक ऐतिहासिक फैसला आया और इस प्रथा पर देश भर में रोक लगा दी गयी.
तीन तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लाभ (Triple Talaq Supreme Court Decision Benefits)
तीन तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को कई लोगों ने सराहा है. देश भर के कई बड़े सामजिक कार्यकर्ता, एक्टिविस्ट, स्कॉलर और भारत सरकार ने कोर्ट के इस फैसले की सराहना की और इसका स्वागत किया. मुस्लिम स्त्रियाँ और युवतियों में इस फैसले के बाद ख़ुशी की लहर देखने मिली. इस फैसले ने इन मुस्लिम स्त्रियों को निम्नलिखित लाभ प्राप्त हो सकेगा.
- चूँकि देश के सर्वोच्च न्यायलय ने इसे मुस्लिम महिला के अधिकारों के ख़िलाफ़ बताया है, तो मुस्लिम महिला सशक्तिकरण में आसानी होगी और स्त्रियाँ अधिक स्वावलम्बी जीवन जी सकेंगी.
- स्त्रियों के अन्दर से इस बात का डर बिलकुल ही निकाल जाएगा कि उनके शौहर किसी भी समय तीन तलाक़ का सहारा लेकर तलाक़ दे देंगे और उनका जीवन खतरे में पड़ जाएगा.
- नयी पीढ़ी कोर्ट के इस फैसले से जागरूक हो सकेगी और उन्हें सामाजिक दायित्व का आभास होगा.
- मुस्लिम स्त्रियाँ अब शादी के बाद भी खुल के अपने हित में फैसले लेने में सक्षम हो सकेंगीं, क्यों कि उन्हें तलाक़ पाने का डर नहीं होगा.
- देश भर के लिए एक संविधान है, अतः मुस्लिमों के शरिया क़ानून पर तलाक सम्बंधित फैसले पर रोक लगेगा और तलाक़ के लिए मुस्लिमों में कोर्ट केस अनिवार्य होगा.
- इस फैसले के बाद अब देश के जागरूक नागरिक अन्य रुढ़िवादी प्रथाओं के ख़िलाफ़ पूरी उम्मीद के साथ खड़े होंगे और उन पर भी विचार किया जाएगा. इस तरह से धीरे धीरे ऐसी सभी प्राथाएं समाप्त हो जायंगी जो कि आम मनुष्य के मौलिक अधिकारों का हनन करता है. इससे एक नया समाज बनने में काफ़ी मदद प्राप्त होगा.
- हो सकता है इस फैसले के बाद मुस्लिम का ‘बहुविवाह प्रथा’ में उछाल में आ जाए.
इस तरह से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कई स्त्रियों को एक नया बल प्राप्त हुआ है, और स्त्रियाँ अपनी ज़िन्दगी में हिम्मत की नयी रौशनी देख सकेंगी और एक नया आत्मविश्वास भी महसूस करेंगीं.
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