प्याज (कांदे) के फायदे इतिहास उपयोग खेती एवं व्यापार | Onion benefits, History, Uses and Business in hindi
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में आलू के बाद सबसे महत्वपूर्ण सब्जी है कांदा. इसे प्याज भी कहा जाता है. इसका सबसे आम प्रयोग सब्ज़ियाँ बनाने हेतु होता है, परन्तु सब्जियों के बाद भी इसके कई औषधीय प्रयोग भी हैं. मसलन ये ब्लड सुगर, इन्फेक्शन, मधुमक्खी काट लेने पर, अल्सर आदि में ये बहुत अच्छा काम करता है. इन सबसे परे इसका एक बहुत महत्वपूर्ण गुण है. इसका सेवन शरीर को कैंसर से लड़ने की शक्ति देता है. इसका लगातार इस्तेमाल “बैड कोलेस्ट्रॉल” को कम करने में सहायक है, जिससे ह्रदय सम्बन्धी परेशानियां कम होती हैं. यहाँ इसके सभी पहलुओं पर एक के बाद एक प्रकाश डाला गया है.
कांदे का इतिहास (Onion history)
इसकी भूगोलीय उत्पति का विवरण अब भी अनिश्चित है, क्योंकि जंगली कांदे बहुत पहले विलुप्त हो चुके हैं. सब्जियों में इसका प्रयोग हज़ारों साल पहले से चीन, मिस्र और परसिया में होता था. प्राचीन मिस्र में इसके साथ एक अध्यात्मिक प्रसंग जुड़ा हुआ था. प्राचीन मिस्र के मिथकों के आधार पर इसकी सम्केंद्रित रिंग्स, अनंत जीवन का सूचक- चिन्ह है. मिस्र के क़ब्रों में इसका प्रयोग होता था. इसकी वजह ये थी कि वहाँ की मान्यता के अनुसार रामेसेस 4 जो बीसवें वंश के थे, उनकी आँखों में कांदे के निशान पाए गये थे. यूरोपीय निवेशक कांदा को उत्तरी अमेरिका में ले गये, जहाँ पर रह रहे लोग पहले से ही जंगली कांदा अपने खाने में कई तरह से इस्तेमाल कर रहे थे, और कच्चे भी खा रहे थे.
कांदे के प्रकार (Onion types)
साधारणतः कांदे तीन रंगों में पाए जाते हैं, पहला पीला या भूरा कांदा, जिसे कई जगहों पर लाल कांदा भी कहा जाता है. इस प्रकार के कांदे का इस्तेमाल रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में ख़ूब किया जाता हैं. पीला कांदा ही एक समय के बाद कारमेलाइज्ड होने के बाद भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है. इसके बाद दूसरा सफ़ेद रंग का कांदा होता है. सफ़ेद कांदा की अपनी विशेषताएं हैं. मूलतः कांदा पूरी तरह फल जाने पर खाया जाता है, लेकिन इसका सेवन इससे पहले भी किया जा सकता है. इसे “स्प्रिंग अनियन” कहा जाता है. इसका इस्तेमाल कई तरह के अचारों में होता है. इस तरह आकार और उम्र के साथ कांदे के कई इस्तेमाल देखने मिलते हैं. इन्हें अंग्रेजी मे “पर्ल अनियन” “पिकल अनियन” और “बायलर अनियन ” कहा जाता है. आखिर में तीसरा हरे रंग का कांदा होता है, जिसके पत्तों को सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
कांदे के औशिधीय फ़ायदे (Onion medicinal benefits)
- कांदे में विटामिन सी पाया जाता है जो शरीर में रोग- प्रतिरोधक क्षमता बढाता है.
- इसके साथ इसमें पाए जाने वाले क्रोमियम से ब्लड-सुगर क़ाबू में रहता है. बुखार, सर्दी, एलर्जी आदि में ये तुरंत काम करता है.
- एक बहुत छोटे से कांदे का गंध सांस द्वारा खींचने पर नाक से रक्त-स्त्राव बंद हो जाता है, बुखार के समय इसे मरीज़ के ललाट पर रखने से इसका फायदा होता है.
- रोज़ एक कांदे के सेवन से मनुष्य इनसोम्निया से मुक्ति पा सकता है.
- कांदे में कई पाचक जूस होने की वजह से इसके सेवन से बहुत अच्छी नींद आती है, कांदे के सेवन से पाचन तंत्र स्वस्थ होता है.
- किसी कारण जल जाने पर जले हुए स्थान पर इसके रस का लेप लगाने से जले हुए आदमी को राहत मिलती है.
- इसी तरह किसी तरह के कीड़े के काट लेने पर काटे हुए स्थान पर इसका रस लगाया जाता है, जिससे आराम मिलता है.
- कांदा का इस्तेमाल कैंसर से भी बचाता है.
- कांदे के रस का प्रयोग कई तरह के आँख और कान के रोग के लिए होता है.
- इसके प्रयोग से अनियमित मासिक चक्र का निदान हो सकता है.
- यह बालों के लिए भी कारीगर है, यदि आपके बाल झड़ रहे हैं तो आप बालों की जड़ों में कांदे का रस लगाकर इस समस्या से निजात पा सकते हैं.
रसोई में कांदे का इस्तेमाल (Onion uses in cooking)
अमूमन कांदा का इस्तेमाल अलग-अलग तरह की मसालेदार सब्जियों को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए होता है. इसके अलावा इससे चटनी, सूप और सलाद भी बनायी जाती है. इसका इस्तेमाल करने से सब्जियों में ग्रेवी को और गाढ़ा बनाने में मदद मिलती है. इसके अलावा इससे कांदे का केक, कांदे की ग्रेवी, कांदा पाउडर, कांदा सौस, कांदे का रायता, चीज़ अनियन ओम्लेट, कांदे के कबाब, कांदे के पकोड़े आदि बनाए जाते हैं.
कांदा में पाए जाने वाले पोषक तत्व (Onion Nutrition Facts)
कांदा सब्जियों में जायके के साथ पोषकतत्वों को बढाने के लिए भी होता है. कांदे में कई पोषकतत्व पाए जाते हैं. इसमें विटामिन बी, विटामिन सी, थियामिन इसके अतिरिक्त कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक, आदि तत्त्व हल्के मात्रा में पाए जाते हैं.
कांदे को काटते समय आँख में जलन शुरू हो जाती हैं. दरअसल कांदे में एक विशेष प्रकार का गैस पाया जाता है, जिसका नाम है प्रोपनेथियल- एस ऑक्साइड, जो इसमें जाते ही एक अजब किस्म की कैफियत पैदा करता है, इसकी वजह से आँखों से ख़ुद ब ख़ुद आंसू निकल आते हैं.
कांदे की खेती (Onion cultivation)
कांदे के लिए ऐसी उपजाऊ मिट्टी की ज़रुरत होती है, जो बहुत अच्छी तरह से सूखी हुई हो. बलुई मिट्टी इसके लिए बहुत कारगार साबित होती है, इसका कारण ये है कि बलुई मिट्टी में सल्फर की मात्रा बहुत कम होती है, वहीँ दूसरी तरफ़ चिकनी मिट्ठी में गंधक की मात्रा बहुत अधिक होने की वजह से यह कांदे की खेती के लिए अनुकूल नहीं होती है, और इससे कांदे के सड़ने का डर होता है. इसकी पैदावार को बढाने के लिए एक निश्चित समय अंतराल पर नाइट्रोजन और पोटाश मिश्रित खाद दिए जा सकते हैं. ये एक ठन्ड के मौसम में होने वाला पौधा है. इसकी बोआई के समय जल की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती. कांदे के पौधे में कई तरह के रोग अथवा कीड़े लगने का डर होता है, इसे इससे बचाने के लिए कई तरह की दवाइयाँ उपलब्ध होती हैं, जिसका प्रयोग समय समय पर करना बहुत ज़रूरी होता है.
खेती के बाद इसे रखरखाव की बहुत आवश्यकता होती है. कांदे को सामान्य तापमान वाली जगहों पर रखना उचित होता है, साथ ही कोशिश ये होनी चाहिए कि कांदे की एक ही परत हो. ऐसे वातावरण में कांदा बिना सड़े लगभग 20 दिनो से एक महीने तक रह सकता है.
कांदे का उत्पाद और व्यापार (Onion production business)
एक आंकड़े के आधार पर पूरे विश्व में लगभग 36 लाख हेक्टेयर की ज़मीन पर कांदा उगाया जाता है. लगभग 170 देश अपने लिए स्वयं कांदा उगाते हैं, वहीँ बाक़ी देशों में बाहर से कांदे आयात होते हैं, नीचे कुछ आंकड़े प्रति वर्ष के लिए दिए जा रहे हैं,
- चीन – 20,507,759 मीट्रिक टन
- भारत- 13,372,100 मेट्रिक टन
- संयुक्त राष्ट्र – 3,320,870 मेट्रिक टन
- मिस्र- 2,208,080 मेट्रिक टन
- ईरान- 1,922,970 मेट्रिक टन
- पकिस्तान- 1,701,100 मेट्रिक टन
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